उत्तर प्रदेश में सात साल से नहीं हुए परिषदीय शिक्षकों के प्रमोशन इंचार्ज के सहारे 50 प्रतिशत स्कूल - प्राथमिक शैक्षिक खबर

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उत्तर प्रदेश में सात साल से नहीं हुए परिषदीय शिक्षकों के प्रमोशन इंचार्ज के सहारे 50 प्रतिशत स्कूल

उत्तर प्रदेश में सात साल से नहीं हुए परिषदीय शिक्षकों के प्रमोशन इंचार्ज के सहारे 50 प्रतिशत स्कूल



उत्तर प्रदेश के आधे से ज्यादा परिषदीय प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों को इंचार्ज संभाल रहे हैं इसकी वजह है कि 2015 के बाद से शिक्षकों के प्रमोशन ही नहीं हुए कई जिले तो ऐसे हैं, जहां 15 से 20 साल पहले प्रमोशन हुए थे नतीजा प्रधानाध्यापकों के पद खाली हैं।

ये है प्रमोशन का सिस्टम

परिषदीय स्कूलों में पहली भर्ती प्राइमरी के शिक्षक पद पर होती है उसके बाद दो स्तर पर प्रमोशन होते हैं।

👉 बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में सहायक अध्यापक अध्यापक की भर्ती होती है और प्राइमरी स्कूल में तैनाती मिलती है।

👉 पहला प्रमोशन प्राइमरी स्कूल के प्रधानाध्यापक या अपर प्राइमरी स्कूल में अध्यापक के पद पर होता है।

👉 उसके बाद प्राइमरी स्कूल के प्रधानाध्यापक और अपर प्राइमरी स्कूल के अध्यापक का प्रमोशन अपर प्राइमरी के प्रधानाध्यापक पद पर होता है।

शिक्षक रिटायर तो हुए पर नहीं हुए प्रमोशन

अब समझते हैं कि प्रधानाध्यापक के इतने पद कैसे खाली हुए क्या है वजह

👉 शिक्षकों के पदों पर नई भर्तियाक्षऔर शिक्षा मित्रों के समायोजन से नए अध्यापक तो मिल गए।

👉 प्राइमरी और जूनियर के जो प्रधानाध्यापक रिटायर हुए, उनकी जगह नहीं भरी गईं क्योंकि प्रमोशन नहीं हुए।

नहीं सुलझा वरिष्ठता विवाद

प्रदेश में लगभग 87,000 प्राइमरी और 46,000 अपर प्राइमरी स्कूल हैं इनमें से आधे से ज्यादा स्कूलों में प्रधानाध्यापक नहीं हैं जो सीनियर शिक्षक होता है, उसे इंचार्ज बना दिया जाता है। 

प्रदेश में 2015 के बाद से नहीं हुए इसी तरह उन्नाव में प्राइमरी और अपर प्राइमरी में 2015 में आखिरी बार प्रमोशन हुए थे प्रमोशन 2015 के बाद से तो कहीं नहीं हुए। 

इसकी वजह ये बताई जा रही है। कि वरिष्ठता विवाद में कुछ शिक्षक कोर्ट गए थे। तब से शिक्षा विभाग उस विवाद का निपटारा करके कोई ठोस नीति नहीं बना पाया है।

कौन सी आती हैं दिक्कतें

मेरा मानना है कि प्रधानाध्यापक बनने से मनोबल बढ़ता है और वह आत्मविश्वास के साथ विद्यालय के सम्बंध में निर्णय ले सकता है इंचार्ज उस तरह विद्यालय को नहीं चला सकता इससे विद्यालयों में कई दिक्कतें आती है विवाद का निपटारा कर जल्द प्रमोशन कराए जाएं। 

आपको बता दें  कि मामला कोर्ट में है फिर भी विभाग को पैरवी करनी चाहिए प्रमोशन न होने से उसका प्रभाव विद्यालयों में शिक्षा और अन्य कामकाज पर भी पड़ता है इस पर जल्द निर्णय लिया जाना चाहिए।

शिक्षकों का नजरिया

प्राइमरी स्कूलों में शिक्षा का स्तर संतोषजनक नहीं है इसकी बड़ी वजह शिक्षकों की कमी है आधे से अधिक स्कूलों में प्रधानाचार्य के पद ही खाली हैं। इन्हें तुरंत भरने की जरूरत है साथ ही हर प्रधानाचार्य को कम से कम पांच साल का कार्यकाल दिया जाना चाहिए, ताकि वे स्कूल की जरूरतों को समझ सकें और जरूरी सुविधाएं जुटा सकें तभी शिक्षा का स्तर सुधरेगा।

निदेशक बेसिक शिक्षा शुभा सिंह का कहना है 'प्रमोशन की नई पॉलिसी तैयार की गई है शासन से मंजूरी मिलने का इंतजार है मंजूरी मिलते ही जल्द प्रमोशन शुरू कर दिए जाएंगे।'